सम्पूर्ण श्री श्री १०८ हनुमान चालीसा शुद्ध हिंदी में अनुवाद सहित
सम्पूर्ण श्री श्री १०८ हनुमान चालीसा शुद्ध हिंदी में अनुवाद सहित
|| दोहा ||
| श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि |
|| बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ||
“श्री सदगुरु के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ-पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल सुयश का वर्णन करता हूँ, जो चारों शुभ-फल धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को प्रदान करने वाला है।”
| बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार |
|| बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ||
“हे पवन कुमार हनुमान जी! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि दोनों निर्बल है। मुझे शारीरिक शक्ति-बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का सर्वनाश कर दीजिए।”
चौपाई
| जय हनुमान ज्ञान गुण सागर |
|| जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ १ ॥
“श्री हनुमान जी ! आपकी जय जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह ही है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! आपकी तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में कीर्ति है।”
| राम दूत अतुलित बलधामा |
|| अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ॥ २ ॥
“हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा कोई और बलवान नहीं है।”
| महावीर विक्रम बजरंगी |
|| कुमति निवार सुमति के संगी ॥ ३ ॥
“हे महावीर बजरंग बली जी!आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर कर देते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी एवं सहायक है।”
| कंचन बरन बिराज सुबेसा |
|| कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥ ४ ॥
“आप तो सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में सुन्दर कुण्डल और घुंघराले बालों से सज्जित-सुशोभित हैं।”
| हाथ बज्र और ध्वजा विराजे |
|| काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ ५ ॥
“आपके हाथ में शक्तिशाली बज्र और ध्वजा है और आपके कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।”
| शंकर सुवन केसरी नंदन |
|| तेज प्रताप महा जग वंदन॥ ६ ॥
“हे शंकर जी के अवतार! हे श्री केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की पूरे संसार भर में अर्चना होती है।”
| विद्यावान गुणी अति चातुर |
|| राम काज करिबे को आतुर॥ ७ ॥
“आप प्रकान्ड विद्या के निधान है, गुणवान हैं और अत्यन्त कार्य में कुशल होकर श्री राम जी काज करने के लिए सदेव ही आतुर रहते है।”
| प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
|| राम लखन सीता मन बसिया॥ ८ ॥
“आप को श्री राम चरित मानस को सुनने में आनन्द रस मिलता है।श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में विद्यमान रहते है।”
| सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा |
|| बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ ९ ॥
“आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।”
| भीम रूप धरि असुर संहारे |
|| रामचन्द्र के काज संवारे॥ १० ॥
“आपने विकराल रूप को धारण करके राक्षसों को संहारा है और श्री रामचन्द्र जी के उद्देश्यों एवं कार्यों को सफल भी कराया।”
| लाय सजीवन लखन जियाये |
|| श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥ ११ ॥
“आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।”
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,
तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥ १२ ॥
“श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की है और कहा है कि तुम मेरे सगे भरत जैसे ही प्यारे भाई हो।”
| सहस बदन तुम्हरो जस गावैं |
|| अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥ १३ ॥
“श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से आलिंगन कर लिया की तुम्हारा सुयश हजार मुख से ही सराहनीय अनुकर्णीय है।”
| सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा |
|| नारद, सारद सहित अहीसा॥ १४ ॥
“श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन एवं श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी भी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब मिलके आपका यशो-गुण गान करते है।”
| जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते |
|| कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥ १५ ॥
“यमराज, कुबेर जी आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके सुयश का पूर्णतः भली भांति वर्णन नहीं कर सकते हैं।”
| तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा |
|| राम मिलाय राजपद दीन्हा॥ १६ ॥
“आपने महाराज सुग्रीव जी को श्रीराम जी से मिलाकर उपकार किया है, जिसके कारण वे राजा बन पाए।”
| तुम्हरो मंत्र विभीषण माना |
|| लंकेस्वर भए सब जग जाना॥ १७ ॥
“आपके उपदेश का विभीषण जी ने भली भांति पालन किया जिससे वे लंका के महाराजा बने, इस बात को सब संसार जानता है।”
| जुग सहस्त्र जोजन पर भानू |
|| लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ १८॥
“जो सूर्य भगवान् इतने योजन दूरी पर स्थित है कि उन पर पहुँचने के लिए हजार युग लग जाएँ।दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य नारायण को आपने एक सुन्दर मीठा फल समझकर निगल लिया था।”
| प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि |
|| जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥ १९ ॥
“आपने श्री भगवान रामचन्द्र जी की अंगूठी को मुँह में रखकर समुद्र को लांघ लिया था, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।”
| दुर्गम काज जगत के जेते |
|| सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ २० ॥
“संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम होते हैं , वो आपकी कृपा से सहज ही सुलभ हो जाते है।”
| राम दुआरे तुम रखवारे |
|| होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ २१ ॥
“श्री रामचन्द्र जी के महल द्वार के आप ही रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिल सकता है, अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना श्री राम कृपा दुर्लभ ही है।”
| सब सुख लहै तुम्हारी सरना |
|| तुम रक्षक काहू को डरना ॥ २२ ॥
“जो भी आपकी शरण में चलके आते है, उस सभी को आनन्द ही प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक हों, तो फिर किसी का डर नहीं रहता है।”
| आपन तेज सम्हारो आपै |
|| तीनों लोक हाँक ते काँपै॥ २३ ॥
“आपके सिवाय आपके वेग-तेज़ को कोई नहीं रोक सकता है, आपकी गर्जना से तीनों लोक तक काँप जाते है।”
| भूत पिशाच निकट नहिं आवै |
|| महावीर जब नाम सुनावै॥ २४ ॥
“जहाँ महावीर पवनसुत श्हरी नुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत-पिशाच आस-पास भी नहीं फटक सकते हैं।”
|| नासै रोग हरै सब पीरा |
|| जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ २५ ॥
“वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है, और सब पीड़ा मिट जाती है।”
| संकट तें हनुमान छुड़ावै |
|| मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥ २६ ॥
“हे वीर हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने और बोलने में, जिनका भी ध्यान आपमें रहता है, उनको सभी संकटों से आप छुड़ाते है।”
| सब पर राम तपस्वी राजा |
|| तिनके काज सकल तुम साजा॥ २७ ॥
“तपस्वी राजा भगवान् श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने ही आसानी से सहज में कर दिया।”
| और मनोरथ जो कोइ लावै |
|| सोई अमित जीवन फल पावै॥ २८ ॥
“जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।”
| चारों जुग परताप तुम्हारा |
|| है परसिद्ध जगत उजियारा॥ २९ ॥
“चारों युगों सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी ही कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।”
| साधु सन्त के तुम रखवारे |
|| असुर निकंदन राम दुलारे॥ ३० ॥
“हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते है और सभी दुष्टों का नाश करते है।”
| अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता |
|| अस बर दीन जानकी माता॥ ३१ ॥
“आपको माता श्री जानकी जी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां प्रदान कर सकते है।”
| राम रसायन तुम्हरे पासा |
|| सदा रहो रघुपति के दासा॥ ३२ ॥
“आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में ही रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के सर्नावश के लिए राम नाम औषधि है।”
| तुम्हरे भजन राम को पावै |
|| जनम जनम के दुख बिसरावै॥ ३३ ॥
“आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।”
अन्त काल रघुबर पुर जाई,
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥ ३४ ॥
“अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।”
| और देवता चित न धरई |
|| हनुमत सेई सर्व सुख करई॥ ३५ ॥
“हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।”
| संकट कटै मिटै सब पीरा |
|| जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ ३६ ॥
“हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।”
| जय जय जय हनुमान गोसाईं |
|| कृपा करहु गुरु देव की नाई॥ ३७ ॥
“हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो, जय हो, जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।”
| जो सत बार पाठ कर कोई |
|| छुटहि बँदि महा सुख होई॥ ३८ ॥
“जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।”
| जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा |
|| होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ ३९ ॥
“भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।”
| तुलसीदास सदा हरि चेरा |
|| कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥ ४० ॥
“हे नाथ हनुमान जी | तुलसीदास जी सदा ही श्री रामचन्द्र के दास है।इसलिए आप उनके हृदय में निवास करें।”
| पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
|| राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभुप॥
“हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरूप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।”